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rakshaabandhan agast ko saal-baad saavan maah kee

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सोमवार, 3 अगस्त को सावन माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इसी तिथि पर रक्षा बंधन मनाया जाता है। क्या बर
सबा ९ .२ ९ बाजे तक भड़ा है। भद्रा के बाद ही बहनों को अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधना चाहिए। 9.29 के
बाद रक्षाबंधन अगस्त को पूरे दिन राखी बांध सकते हैं। 3 तारीख को सुबह 7.30 बजे के बाद पूरे दिन श्रवण नक्षत्र
राहे। पूरणिमा पूजन के बाद अपने गुरु का आशीर्वाद भी अवश्य लें।

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उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं। मनीष शर्मा ने रक्षाबंधन पर गुरु अपनी राशि धनु में और शनि मंत्र में वक्री रहेगा।
इस दिन चंद्र भी शनि के साथ मकर में रहेगा। ऐसा योग 558 साल पहले 1462 में बना था। उस वर्ष में 22
जुलाई को रक्षाबंधन रक्षाबंधन अगस्त को मनाया गया था। इस बार रक्षा बंधन पर राहु मिथुन राशि में,
केतु धनु राशि में है। 1462 में भी राहु-केतु की यही स्थिति थी।

सभी 12 राशियों की योजनाओं का असर

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मेष, वृष, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर, मीन राशि के लोगों के लिए योजनाओं के योग शुभ रहने वाले
हैं। इन लोगों को कड़ी मेहनत का फल मिल सकता है। स्वास्थ्य लाभ मिलेगा। नौकरी में सफलता
मिलने के योग हैं। कर्क राशि के लिए समय सामान्य रहेगा। rakshaabandhan
agast ko saal मिथुन, सिंह, तुला, कुंभ राशि के लोगों को संभलकर रहना होगा।
ये लोग को समय का साथ नहीं मिल पाएगा। कार्य की अधिकता रहेगी।

विधिवत पूजा के बाद बांधना चाहिए रक्षासूत्र

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रक्षाबंधन पर सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए। स्नान के बाद देवी-देवताओं की पूजा करें। पितरों के लिए धूप-
ध्यान करें। ये शुभ कामों के बाद पीले रेशमी वस्त्र में सरसों, केसर, चंदन, चावल, दूर्वा और अपने सामर्थ्य
के अनुसार सोने या चांदी रखने लें और रक्षाबंधन पर कल सावल धागा बांधकर रक्षासूत्र पहनें। इसके बाद घर
के मंदिर में एक कलश की स्थापना करें। उस पर रक्षासूत्र को रखें, विधिवत पूजन करें। पूजा में हार-फूल
चढ़ना। वस्त्र अर्पित करें, भोग लगाएं, दीपक जलाकर आरती करें। पूजन के बाद ये
रक्षासूत्र को दाहिने हाथ की मुट्ठी पर बंधवा लेना चाहिए।

भास्कर नंगे

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सबसे पहले इंद्राणी ने देवराज इंद्र को बांधा था रक्षासूत्र

पं। शर्मा के मुताबिक प्राचीन समय में भगवान और असुरों के बीच युद्ध हो रहा था। इस युद्ध में देवताओं को
रक्दानंदन अगस्त को काल पराजित होना पड़ा। असुरों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवराज इंद्र और
सभी देवता इस समस्या को दूर करने के लिए देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। इंद्र ने देवगुरु से कहा
कि मैं स्वर्ग छोड़कर नहीं जा सकता, असुरों ने हमें परजित कर दिया, हमें फिर से युद्ध करना चाहिए।

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इंद्र की ये बातें इंद्राणी ने भी सुनी, फिर उन्होंने कहा कि कल सावन माह की पूर्णिमा है। मैं आपके
लिए विधि-विधान rakshaabandhan agast ko saal से रक्षासूत्र तैयार
करूंगी, उसे बांधकर आप युद्ध के लिए प्रस्थान करना, आपकी जीत अवश्य होगी। अगले दिन देवराज
इंद्र रक्षासूत्र बांधकर असुरों से युद्ध करने गए और उन्होंने असुरों को परजित कर दिया।
तब से ही ये त्योहार मनाया जाने लगा।

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